संदेश

चड्डी पहन के फूल खिला

आज चाय पीते समय कविता की कुछ पंक्तियां "गुलज़ार" कर गईं                 एक परिन्दा है शर्मिंदा,                                             था वो नंगा....                भाई इससे तो अंडे के अंदर                                             था वो चंगा....         सोच रहा है बाहर आखिर क्यों निकला है                                            तुरु रु रू  अरे चड्डी पहन के फूल खिला है  फूल खिला है जंगल  जंगल  पता चला है  चड्डी पहन के फूल खिला है जंगल  जंगल  पता चला है  चड्डी पहन के फूल खिला है...         ...

शाही कुर्सी और शाही आईना

 जब शाही कुर्सी पर संकट आयो, मामा हमरो एक्शन में आयो । घूम घूम जनता के सामने, मामा लगे रोज गिड़गिड़ाने । जब  कुर्सी का भेद ना पाया, मामा ने रूठों को दावत पर बुलाया। पुष्प वर्षा से स्वागत कीनो,डिब्बाबंद जलपान करायो । मुंह से बड़े- बड़े उपहार दियो, तब जनता ने आशीर्वाद दियो । अब मिला कुर्सी का भेद, हमरो मामा लाखों में एक । जब कुर्सी में बैठने की बारी आई, शाही आईना लिए बंदर की सवारी आई । बंदर जब कुर्सी पर बैठा, कुर्सी का भेद खो बैठा । लगा अब बंदर शाही आईना दिखाने, मजे ले रहा खेल खिलाने। पर भूल गया है दंभी  जनता बैठी रूठ के , गा रही बंदर मामा दूर के  हमें दिखाओ भूल के ।

महंगाई पर मुद्दावीर

             लोकतंत्र में मुद्दतों(5वर्ष) के बाद मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते हैं। जनता अपने मुद्दों के बल पर ही अपनी सरकार बनाती है ताकि जो उसके मुद्दे हैं उनका निराकरण हो सके। इस प्रकार वो सही मायने में अपना मुद्दावीर  चुनती है।             चुनाव कई मुद्दों पर लड़े जाते हैं, पर एक मुद्दा ऐसा है जो कि हर बार की सरकार के कार्यकाल जरूर में आता है, वो है महंगाई ।            आज के समय में महंगाई देशी भी है और विदेशी भी अर्थात उसके देशी कारण भी हैं और विदेशी भी।               भारत हमेशा एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था का उदाहरण पेश करता आया है जबकि हमारे मुद्दावीरों ने हमेशा मुद्दों को दरकिनार कर वीर   बयान  दिए हैं।               ये ऐसे वीर बयान हैं जो किसी समस्या का समाधान नहीं करते बल्कि हम पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हैं कि क्या हम हर बार उस बाहुबली को चुनते हैं जिसे कटप्पा ने मारा ?         ...

कहानी आजादी का अमृत महोत्सव

         लगभग साढ़े आठ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले मंडला, जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है सिझौरा। शिक्षा क्षेत्र में यह गांव जिले में अग्रणी रहा है । इस छोटे से गांव में दो देशभक्त दोस्त रहते थे। एक का नाम केसरी लाल और दूसरे का नाम  हरिप्रसाद था। दोनों दोस्त साथ - साथ खेलते कूदते बड़े हो रहे थे । बात उन दिनों की है ,जब दोनों कक्षा दसवीं में पढ़ रहे थे। स्कूल की बोर्ड परीक्षा नजदीक थी।   दिसंबर का महीना था,कड़ाके की ठंड थी तब केसरी लाल स्कूल की छुट्टी होते ही स्कूल से घर आकर हाथ- मुंह धोता और अपनी एक पुस्तक लेकर पास ही स्थित काष्ठागार चला जाता । वहां एक सरई की लकड़ी का तना पड़ा था, उस पर बैठकर प्रतिदिन पढ़ाई करता था । ऐसा करते उसे एक महीने हो गए।एक दिन उसके मित्र हरिप्रसाद ने उससे पूछा,"तुम रोज इसी लट्ठे ( लकड़ी का तना)पर बैठकर पढ़ाई क्यों करते हो? यहां बहुत से लट्ठे हैं,तुम उन पर भी बैठ सकते हो ? " केसरी ने हरी से कहा ,"हरि! यह एक पवित्र तना है।इसका देश की आजादी में योगदान अतुलनीय है ,जिसे इतिहास के पन्नों में द...

गौ,गोबर और गौमूत्र की राजनीति में मध्यप्रदेश

दिसम्बर 2018,कमलनाथ मध्यप्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री बने । रोजगार के मुद्दे पर पायी ताजपोशी पर सबसे बड़ा कार्य रोजगार के अवसर प्रदान करना ही  था । साथ ही साथ अतिथि शिक्षक ,अतिथि विद्वान नियमितीकरण जैसे भी मुद्दे थे । परन्तु कहा जाता है कि बालक के व्यवहार पर आनुवांशिकता और वातावरण का गहरा प्रभाव रहता है तो फ़िर क्या था मध्यप्रदेश में ढोर चराने , बाजा बजाने जैसे रोजगार मुहैया कराने की बात सरकार द्वारा होने लगी।   मार्च 2020 में तमाम सियासी उठापटक,आरोप-प्रत्यारोप के बीच कमलनाथ सरकार गिर गयी और सिंधिया प्रधान शिवराज शासन मध्यप्रदेश को पुनः मिल गया । प्रदेश में उपचुनाव भी हुए भाजपा को भरपूर समर्थन मिला,और मध्यप्रदेश में मामा के एक नए जोश के साथ आते ही 22 नवम्बर को गौधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौ-केबिनेट के गठन का फ़ैसला कर गए ।       एक ओर सड़कें,बाजार अवारा पशु से भरे पड़े हैं वहीं दूसरी ओर गौ-केबिनेट।  फ़िर ढोर चराने, बाजा बजाने जैसे रोजगार पर प्रश्न चिन्ह लागाना कहां तक सही है?       कुल मिलाकर प्रदेश में किसी की भी सरकार रहे आगामी समय मे...