महंगाई पर मुद्दावीर

             लोकतंत्र में मुद्दतों(5वर्ष) के बाद मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते हैं। जनता अपने मुद्दों के बल पर ही अपनी सरकार बनाती है ताकि जो उसके मुद्दे हैं उनका निराकरण हो सके। इस प्रकार वो सही मायने में अपना मुद्दावीर चुनती है।
            चुनाव कई मुद्दों पर लड़े जाते हैं, पर एक मुद्दा ऐसा है जो कि हर बार की सरकार के कार्यकाल जरूर में आता है, वो है महंगाई
           आज के समय में महंगाई देशी भी है और विदेशी भी अर्थात उसके देशी कारण भी हैं और विदेशी भी। 
             भारत हमेशा एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था का उदाहरण पेश करता आया है जबकि हमारे मुद्दावीरों ने हमेशा मुद्दों को दरकिनार कर वीर बयान दिए हैं।
              ये ऐसे वीर बयान हैं जो किसी समस्या का समाधान नहीं करते बल्कि हम पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हैं कि क्या हम हर बार उस बाहुबली को चुनते हैं जिसे कटप्पा ने मारा ?
              ऐसे ही बयानों की बयार:-
(1) गांवों में पिछले पांच सालों में साल दर साल लोगों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हुई है। उनकी आय हर साल करीब 20% की दर से बढ़ी है। इससे उनकी खाने - पीने की आदतें भी बढ़ती हैं। वे अब हाई प्रोटीन खाना खाने लगे हैं। उनके खाने में दूध, अंडे और फल की मात्रा बढ़ी है।
                नतीजा यह रहा है कि बाजार में दूध, मीट, दाल, फल और सब्जियों की मात्रा में भी इजाफा हुआ है। 
                         (डी. सुब्बाराव पूर्व आरबीआई गवर्नर 2013)
(2) पांच लोगों के परिवार के लिए महिने में 600 रुपए पर्याप्त।
                         (स्व. शीला दीक्षित पूर्व मुख्यमंत्री दिल्ली 2012)
(3) 32 रुपए कमाने वाला शहरी और 26 रुपए कमाने वाला ग्रामीण गरीब नहीं।
                          (मोंटेक सिंह अहलूवालिया, पूर्व योजना आयोग उपाध्यक्ष 2011)
(4) किस चीज की महंगाई है, सब्जी की? भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और सब्जी के उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है।
           गरीब सूखी रोटी के बदले सब्जियां खा रहे हैं। डिमांड बढ़ रही है, उस अनुपात में उत्पादन नहीं बढ़ रहा इसलिए महंगाई बढ़ रही है। 
                           (कपिल सिब्बल पूर्व कानून मंत्री 2013)
(5) जब फिल्में करोड़ों का कारोबार कर रहीं हैं, तो मंदी कहां है?
                          ( रविशंकर सिंह 2019)
(6) हमारे प्रधानमंत्री 80 करोड़ गरीब लोगों को फ्री का खाना दे रहे हैं तो क्या उन्हें बधाई नहीं देना चाहिए?
                          (निशिकांत दुबे, सांसद 2022)
(7) आप महंगाई खोज रहे हैं लेकिन महंगाई मिल नहीं रही है क्योंकि महंगाई है ही नहीं।
              सरकार ने उनकी थाली भर दी है। बल्कि गरीब के घर बैंक का खाता पहुंचा दिया है। 5 लाख का आयुष्मान बीमा भी दे दिया है तो फिर कौन सी महंगाई ?             (जयंत सिन्हा, सांसद 2022)
      
                 जो फर्ज है सत्ता का वो जनता पर मानो कर्ज बनता जा रहा है।
                       आगे भी बयान की बयार update करेंगे 

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