कहानी आजादी का अमृत महोत्सव
लगभग साढ़े आठ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले मंडला, जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है सिझौरा। शिक्षा क्षेत्र में यह गांव जिले में अग्रणी रहा है । इस छोटे से गांव में दो देशभक्त दोस्त रहते थे। एक का नाम केसरी लाल और दूसरे का नाम हरिप्रसाद था। दोनों दोस्त साथ - साथ खेलते कूदते बड़े हो रहे थे । बात उन दिनों की है ,जब दोनों कक्षा दसवीं में पढ़ रहे थे। स्कूल की बोर्ड परीक्षा नजदीक थी। दिसंबर का महीना था,कड़ाके की ठंड थी तब केसरी लाल स्कूल की छुट्टी होते ही स्कूल से घर आकर हाथ- मुंह धोता और अपनी एक पुस्तक लेकर पास ही स्थित काष्ठागार चला जाता । वहां एक सरई की लकड़ी का तना पड़ा था, उस पर बैठकर प्रतिदिन पढ़ाई करता था । ऐसा करते उसे एक महीने हो गए।एक दिन उसके मित्र हरिप्रसाद ने उससे पूछा,"तुम रोज इसी लट्ठे ( लकड़ी का तना)पर बैठकर पढ़ाई क्यों करते हो? यहां बहुत से लट्ठे हैं,तुम उन पर भी बैठ सकते हो ? "
केसरी ने हरी से कहा ,"हरि! यह एक पवित्र तना है।इसका देश की आजादी में योगदान अतुलनीय है ,जिसे इतिहास के पन्नों में दबा दिया गया है ।
हरि ने कहा ,"यह कैसे हो सकता है, एक लट्ठे का और आजादी में योगदान !
केसरी ने कहा," बात उन दिनों की है जब जबलपुर में 1857 की क्रांति की ज्वाला भड़क उठी, तब उस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज की एक टुकड़ी यहां से रवाना हुई। उस समय उनके रास्ते में यह पेड़ गिर गया और इसे काटने में अंग्रेजों को 2 दिन का समय लग गया। जब तक वे मार्ग से पेड़ हटा पाते तब तक विद्रोह की ज्वाला समूचे मध्य भारत में भड़क उठी। इस प्रकार आजादी में इसका योगदान सबसे बड़ा है।"
हरि की आंखों में आंसू आ गए। वह उस लट्ठे के पास जमीन में बैठ गया ।दोनों विचार विमर्श करने लगे कि जिस तरह देश की आजादी में महात्मा गांधी, लाल - बाल- पाल,सरदार वल्लभ भाई पटेल ,चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह , उस साहित्य का योगादान है जिसने लोगों में देशभक्ति की भावना को जागृत किया इत्यादि ।उसी प्रकार उन आंधियों का भी रहा होगा जो अंग्रेज सेना के मार्ग में बाधा बनी होंगी, उस मुर्गे की कूक का भी योगदान रहा होगा,जो देशभक्त क्रांतिकारियों को सूर्योदय के पूर्व निद्रा से उठाती होंगी, उस पेड़ की छांव का भी रहा होगा जिसे देखकर (समय का अंदाजा लगाकर) भगत सिंह ने 8 अप्रैल 1929 को नेशनल असेंबली में बम फेंका होगा ,उस बंदूक की गोली का भी योगदान रहा होगा जिसने चंद्रशेखर आजाद के विचारों का सम्मान की होंगी ।
ऐसा विचार कर, अब दोनों खड़े होकर नम आंखों से उस सरई के लट्ठे को सलामी देते हैं
लट्ठ सलाम एक - दो ।
अंत में उन ग्रहों ,नक्षत्रों ,तारों का भी योगदान है जिन्होंने ऐसे संयोग बनाए कि आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं।
।। वंदे मातरम्।।
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