शाही कुर्सी और शाही आईना

 जब शाही कुर्सी पर संकट आयो,
मामा हमरो एक्शन में आयो ।
घूम घूम जनता के सामने,
मामा लगे रोज गिड़गिड़ाने ।
जब  कुर्सी का भेद ना पाया,
मामा ने रूठों को दावत पर बुलाया।
पुष्प वर्षा से स्वागत कीनो,डिब्बाबंद जलपान करायो ।
मुंह से बड़े- बड़े उपहार दियो,
तब जनता ने आशीर्वाद दियो ।
अब मिला कुर्सी का भेद,
हमरो मामा लाखों में एक ।

जब कुर्सी में बैठने की बारी आई,
शाही आईना लिए बंदर की सवारी आई ।
बंदर जब कुर्सी पर बैठा, कुर्सी का भेद खो बैठा ।
लगा अब बंदर शाही आईना दिखाने,
मजे ले रहा खेल खिलाने।
पर भूल गया है दंभी 
जनता बैठी रूठ के ,
गा रही बंदर मामा दूर के 
हमें दिखाओ भूल के ।





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